Congress should also unite itself with opposition unity

कांग्रेस विपक्षी एकता के साथ खुद को भी एकजुट करे

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Congress should also unite itself with opposition unity

Congress should also unite itself with opposition unity : कांग्रेस के  छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में 85वें महाधिवेशन के दौरान पार्टी नेताओं में अगर ताजगी नजर आ रही है तो यह स्वाभाविक है। पार्टी ने लंबे समय के बाद अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष चुना है और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा किया है। पार्टी को हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल हुई है और अब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए वह खुद को तैयार कर रही है। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति आशावाद का श्रेष्ठ उदाहरण नजर आती है, जब वह खुद को नये सिरे से जोड़ कर सफलता हासिल करने की मंशा से पुन: खड़ी हो रही है। हालांकि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े का यह कथन कि पार्टी 2024 में विपक्षी एकता के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार है, उसकी दुखती रग को भी प्रदर्शित करता है। यह चिंतनीय है कि कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले के लिए विपक्ष को एकजुट करने की जरूरत पड़ रही है। जबकि कांग्रेस वह पार्टी है, जिसने देश की आजादी में योगदान दिया और उसके बाद पूरे देश पर उसका एकछत्र राज रहा।
 

इस वर्ष कुछ राज्यों में विधानसभा भी होने हैं, जिनका परिणाम यह तय करेगा कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव का कैसा रंग-रूप रहने वाला है। देश में इस समय कांग्रेस को उन्हीं विपक्षी दलों से ज्यादा चुनौती झेलनी पड़ रही है, जिन्हें वह भाजपा के खिलाफ एकजुट करके कामयाबी हासिल करने की चाह रखे हुए है। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को किससे हार मिली है, वह बेहतर जानती है। वह भाजपा नहीं अपितु आम आदमी पार्टी थी। इसके बावजूद कांग्रेस की यह पुकार समय की मांग है कि विपक्ष के दल एकजुटता प्रदर्शित करें, हालांकि सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ऐसा हो सकेगा? 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी विपक्ष की इसी एकता की पुकार हो रही थी, तब भाजपा को कर्नाटक में अगर हार मिली तो उसका जश्न मनाने के लिए कांग्रेस, आप, टीएमसी, जदयू, बसपा, सपा समेत तमाम विपक्षी दल एक मंच पर नजर आए थे, लेकिन जब चुनाव की घोषणा हुई तो सभी अलग-अलग हो गए। अब एक बार फिर अगर ऐसी एकता की मांग उठ रही है तो पूछा यही जा रहा है कि क्या वास्तव में विपक्ष के दल सच में एक मंच पर आएंगे? जाहिर है, तब तक कांग्रेस के पत्ते जाहिर हो चुके होंगे। अगर विपक्ष के दल एकजुट हुए भी तो कांग्रेस की भूमिका क्या होगी, क्या टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करेंगी, या फिर समाजवादी पार्टी और बसपा के नेता कांग्रेस के पीछे चलना पसंद करेंगे। क्या पंजाब में शिअद, कांग्रेस के साथ चल सकती है, या फिर हरियाणा में इनेलो जिसके स्वर कांग्रेस के प्रति नरम नजर आ रहे हैं, उसका नेतृत्व स्वीकार करेगी। कांंग्रेस अध्यक्ष खडग़े ने कहा है कि 2004 से 2014 तक कांग्रेस ने संप्रग के रूप में समान विचारधारा वाले दलों का नेतृत्व कर देश की मजबूती से सेवा की थी। इसके बाद वे विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने की दावेदारी पेश करते हुए मौजूदा कथित कठिन परिस्थितियों में कांग्रेस को ही एकमात्र ऐसी पार्टी बताते हैं जोकि सक्षम और निर्णायक नेतृत्व प्रदान कर सकती है।

वास्तव में 2004 में भाजपा का उबार ऐसी परिस्थितियों में हुआ था, जब देश को एक ताजगी पूर्ण नेतृत्व नजर आया। कांग्रेस डॉ. मनमोहन सिंह को ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर अपनी छवि को गढऩे की कोशिश कर रही थी, लेकिन देश की जनता के मन में वे सभी सवाल थे कि आखिर देश जा कहां रहा है? इसी समय जब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के चेहरे नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि अच्छे दिन आएंगे तो देश को उनकी बात पर भरोसा नजर आया और वह भाजपा के साथ चल पड़ा। इसके बाद साल 2019 में तमाम सवालों के बावजूद देश ने फिर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया। अब जब अगले वर्ष देश एक और आम चुनाव के लिए तैयार होगा तो बीते दस वर्षों के भाजपा के शासनकाल और कांग्रेस व अन्य दलों के लगभग 66 वर्षों के राजकाज का लेखा जोखा करेगा तो उसे फर्क जरूर नजर आएगा। वास्तव में यही वह बड़ी सफलता है जोकि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में हासिल कर ली है। वास्तव में कांग्रेस को खुद को संवारने और विपक्षी एकता के लिए काम करते रहना चाहिए, लेकिन यह भी जरूरी है कि पार्टी अपनी नीतियों, कार्यक्रमों और बयानों में पारदर्शिता एवं ठोसपन लेकर आए। अब सिर्फ यह पाठ देने का समय नहीं है कि ऐसा कर लो। अब खुद करके बताने का जमाने है। कांग्रेस को पहले अपने घर में एकता कायम करनी होगी, उसे विपक्षी दलों का साथ चाहिए तो खुद को बरगद बनने से रोकना होगा। वैसे यह भी चिंतनीय है कि एक ऐतिहासिक पार्टी के समक्ष छोटे-छोटे दल महाकाय कैसे होते गए हैं?

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